सजाया था हमने भी आंखों में एक सपना ,
मिला था गैरों की भीड़ हमें कोई अपना |
गुफ्तगू थी दो दिलों के दरमियान,
सोचा प्यारा सा होगा ये सफर अपना |
इब्तिदा थी ये हमारी मोहब्बत की ,
बनाना चाहा था हमने भी एक आशियाना |
आबाद समझा हमने जिसे देख के ,
बे -तासीर कर चले हैं हमें तनहा छोड़ के |
यूं ही दिल में दबे रह गए हमारे सब अरमान ,
तुम चले जब दूर ले कर अपना सामान |
मेरी जान तुम होगी हैरान ये जान के ,
खुश थे हम तुम्हे भी अपना मान के |
पैगाम आया की तुम चले कहीं हमें छोड़ के ,
तालुकात हमारे दिल से सारे तोड़ के |
अब यूं जो चले जा रहे हो हमसे दूर ,
हमारी थी कोई खाता या तुम्हे है कोई गरूर |
लताफत न होगी अब ये जिंदगी तुम्हारे बिना ,
तुम्हे ही चाहेंगे , रहेंगे सदा तेरे आशना |
जानते है हम तुम भी यूं न रह पाओगी ,
हर आईने में गिरधर की ही सूरत पाओगी |
जब एहसास होगा तुम्हे हमारी मोहब्बत का ,
छोड़ के सब मेरे पास भागी आओगी ......
इंतज़ार में
सौरभ गिरधर
Hello World - Reboot!
10 years ago
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